भारत में दिवाली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि अंधकार पर प्रकाश और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। देश के उत्तर से लेकर दक्षिण तक इस त्यौहार को अलग-अलग पौराणिक कथाओं और परंपराओं से जोड़ा गया है।
दिवाली मनाने के पीछे मुख्य रूप से तीन पौराणिक आधार माने जाते हैं—
राम का अयोध्या आगमन:
इसी दिन भगवान राम 14 वर्ष के वनवास और रावण वध के बाद अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर अपने आराध्य का स्वागत किया, और तभी से दीपावली का उत्सव प्रारंभ हुआ।
नरकासुर वध:
नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण और सत्यभामा ने अत्याचारी राक्षस नरकासुर का वध किया था। इस विजय को अधर्म पर धर्म की जीत के रूप में मनाया गया, और इसी खुशी में दीप प्रज्ज्वलित किए गए।
लक्ष्मी प्रकटोत्सव:
कहा जाता है कि इसी दिन सागर मंथन से देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व है। लोग धन, समृद्धि और सुख-समृद्धि की कामना से माता लक्ष्मी की आराधना करते हैं।
देश के हर कोने में दिवाली की अपनी विशेष पहचान है — उत्तर भारत में यह राम की विजय, दक्षिण भारत में नरकासुर वध और पश्चिम भारत में लक्ष्मी पूजन के रूप में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई जाती है।
